मानसी के गुलाब की पंखुड़ियां जैसे नाज़ुक होठों को अपने होठों से दबाने लगा। अपनी जिभ को मानसी की जिभ से टोकरा रहा था दोनों की जिभन पेंच लाडा रही थी ओवर हैथ उसके डोनन कबूतरों को अपने में समेटे हुए धीरे धीरे मसल रहे थे ओवर मानसी के मुंह से अहा..ओहा..उफा..एस.एस.एस.एस.एस.एस…जीजा जी ..अई..ल वी ..यू…ओओहा..जैसी मदक सिस्कारी निकल रही थी.राज होठों से अपने होठों को छुड़ा कर अपनी जिह्वा को मानसी के चूंचियों की तरफ ले आया। “उफ़ क्या कयामत है,” ऐसे कहते हुए अपनी जीभ से उसकी गुलाबी… Antarvasna Read more